रांची: कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत ने कहा है कि 1932 का खतियान आधारित स्थानीय नीति झारखंड की अस्मिता से जुड़ी है। स्थानीय नीति परिभाषित नहीं होने के कारण झारखंड राज्य गठन के मूल उद्देश्य का क्षरण होता जा रहा है।
सुखदेव भगत ने गुरुवार को रांची में संवाददाता सम्मेलन में कहा कि 1932 खतियान के विरूद्ध में संविधान के हवाले से यह बात कही जा रही है कि कोई भी व्यक्ति कहीं भी निवास कर सकता है, जो सही है और यह भी सही है कि संविधान का सर्वाेच्च न्यायालय ने कहा है कि कोई भी भारतीय हर राज्य का स्थायी निवासी नहीं हो सकता। सुखदेव भगत ने कहा कि देश का सर्वाेच्च पंचायत लोकसभा सचिवालय नयी दिल्ली से प्रकाशित समाचार मंजूषा जनवरी 2002 के अंक-1 के पेज नंबर-8 में भी इन बातों का जिक्र है।
पूर्व विधायक सुखेदव भगत ने कहा कि 1932 का खतियान झारखंडियों की पहचान का एक आधार है, जिस प्रकार भाषाई आधार पर 1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग उड़िया वालों के लिये उड़ीसा, कन्नड़ भाषा के लिये कर्नाटक और बंगाली भाषी के लिये पश्चिम बंगाल आदि राज्यों का गठन किया। ठीक उसी प्रकार 1932 का खतियान झारखंडियों के अस्मिता का प्रश्न है. कहा कि जो लोग 1932 की खतियान की बात को असंवैधानिक प्रावधान के प्रतिकुल बोल रहे हैं वो शायद भूल रहे हैं कि इसी संविधान में पांचवीं अनुसूचि स्थायी उपबंध के रूप में है।