लेखक--सच्चिदानंद शेकटकर राष्ट्रभाषा हिंदी को लेकर दक्षिण भारत के राज्य हमेशा से ही विरोध करते आ रहे हैं। इन दक्षिणी राज्यों में हिंदी का विरोध करने वालों में तमिलनाडु सबसे प्रमुख राज्य है। इस राज्य के जितने भी मुख्यमंत्री हुए हैं वह सब राष्ट्रभाषा हिंदी का विरोध करते हुए अपने राज्य की तमिल भाषा के सबसे बड़े हितेशी बने रहने का झंडा उठाएं रहे हैं। पूर्ववर्ती मुख्यमंत्रियों की हिंदी के विरोध करने की परंपरा का निर्वाहन तमिलनाडु के मौजूदा मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने भी जारी रखा है। वह हमेशा किसी न किसी मौके पर राष्ट्रभाषा हिंदी का विरोध करते रहते हैं। अब एक बार फिर मुख्यमंत्री स्टालिन ने अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को हिंदी और संस्कृत भाषा को लेकर एक पत्र भी लिख भेजा है। स्टालिन ने अपने पत्र में लिखा है कि तमिलनाडु सरकार नई शिक्षा नीति के तहत त्रिभाषा नीति के विरुद्ध है। स्टालिन केंद्र सरकार पर हिंदी थोपने का आरोप भी लगा रहे हैं। हिंदी का विरोध करते हुए स्टालिन कहते हैं कि वह हिंदी के खिलाफ हैं और हर हालत में तमिल और उसकी संस्कृति की रक्षा करेंगे। स्टालिन ने कार्यकर्ताओं को जो पत्र भेजा है उसमें भी लिखते हैं कि हम हिंदी थोपे जाने का विरोध करते हैं और उनके लिए हिंदी एक मुखौटा है और उसके पीछे का चेहरा संस्कृत है। तमिलनाडु की द्रमुक सरकार केंद्र सरकार पर आरोप लगाती रही है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत तीन भाषा के फार्मूले के जरिए हिंदी थोपने की कोशिश की जा रही है। स्टालिन अपने पत्र में अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ ही बड़े शातिराना तरीके से हिंदी भाषी राज्यों के लोगों को भी भडक़ाने का काम किया है। स्टालिन हिंदी भाषी राज्यों के लोगों को यह बतला रहे हैं कि हिंदी ने अन्य भारतीय भाषाओं को निगल लिया है। स्टालिन पत्र में लिखते हैं भोजपुरी, मैथिली, अवधि, बुंदेली, मगही, मालवी,गढ़वाली, ब्रज, कुमाऊनी, मारवाड़ी, छत्तीसगढ़ी,संथाली, अंगिका, खारिया, खोरठा, कुरमाली कुरूख एवं मुंडारी समेत कई क्षेत्रीय भाषाओं का स्टालिन उल्लेख करते हैं और लिखते हैं कि यह सभी क्षेत्रीय भाषाएं अपने अस्तित्व के लिए हांफ रही हैं। अखंड हिंदी पहचान की कोशिशें से प्राचीन भाषायें नष्ट हुई हैं। स्टालिन ने अपने पत्र में यह भी बतलाया है कि यूपी बिहार हार्टलेंड नहीं थे। बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे उत्तर भारतीय राज्यों में बोली जाने वाली कई भाषाओं जैसे मैथिली, ब्रजभाषा बुंदेलखंडी और अवधि को हिंदी के प्रभुत्व ने नष्ट कर दिया है। वही स्टालिन यह भी आरोप लगा रहे हैं कि संस्कृत भाषा को भी बढ़ावा दिया जा रहा है और कई राज्य सरकारें अपने राज्य में संस्कृत को लागू करने की कोशिश भी जारी रखे हैं। दक्षिण भारत के राज्य अपने राज्य की भाषा का संरक्षण और संवर्धन करें इसे लेकर किसी को भी आपत्ति नहीं हो सकती है। आज गुजरात सरकार गुजराती भाषा में महाराष्ट्र सरकार मराठी में और आंध्र प्रदेश की सरकार तेलुगु भाषा में सरकारी कामकाज करती आ रही हैं। इन सरकारों ने कभी भी अपने राज्यों में सरकारी कामकाज को हिंदी भाषा में करने के लिए दबाव ही नहीं बनाया है। इसलिए तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन का यह आरोप बेबुनियाद नजर आ रहा है कि हिंदी भाषा क्षेत्रीय भाषाओं को निगल रही है। अब देखना है कि केंद्र सरकार हिंदी और त्रिभाषा नीति को लेकर हिंदी का विरोध करने वाले राज्यों के लिए किस प्रकार की रणनीति बनाती है।