Tarari Assembly Seat : 15 उम्मीदवारों के बीच कांटे की टक्कर, अब वोटरों के हाथ में फैसला

तरारी सीट पर भूमिहार मतदाता और राजनीतिक इतिहास तय करेंगे चुनावी समीकरण
तरारी विधानसभा सीट : 15 उम्मीदवारों के बीच कांटे की टक्कर, अब वोटरों के हाथ में फैसला

पटना: भोजपुर जिले की तरारी विधानसभा सीट इस बार भी राजनीतिक लड़ाई का केंद्र बनी हुई है। यह सीट आरा लोकसभा क्षेत्र में आती है और ऐतिहासिक रूप से यह एक समय नक्सल प्रभावित रही, लेकिन अब चुनावी मुकाबला पूरी तरह विकास और जातीय समीकरणों पर केंद्रित है। इस बार यहां कुल 15 उम्मीदवार मैदान में हैं। भाकपा-माले ने मदन सिंह, भाजपा ने विशाल प्रशांत और जन स्वराज पार्टी ने चंद्रशेखर सिंह को इस सीट पर उम्मीदवार बनाया है।

तरारी विधानसभा क्षेत्र में पीरो नगर पंचायत, पीरो उपमंडल के सात ग्राम पंचायत और तरारी व सहार प्रखंड शामिल हैं। सोन नदी के किनारे बसी इस उपजाऊ भूमि पर कृषि आधारित जीवनशैली फलती-फूलती रही है।

क्षेत्र के सांस्कृतिक और धार्मिक स्थल भी इसे खास बनाते हैं। तरारी का सूर्य मंदिर, जो 14वीं शताब्दी या उससे पहले का निर्मित बताया जाता है, सूर्य भगवान और अन्य देवी-देवताओं को समर्पित है। सहार प्रखंड के एकवारी गांव में मुगलकालीन महामाया मंदिर और धरमपुर गांव में पयहारी जी का आश्रम भी इस क्षेत्र की धार्मिक धरोहर का हिस्सा हैं।

2008 के परिसीमन से पहले तरारी को पीरो विधानसभा के नाम से जाना जाता था। तब इस सीट पर कांग्रेस और समाजवादी पार्टियों का दबदबा रहा, बीच में वाम दलों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज की। बाद में बाहुबली नेता नरेंद्र नाथ पांडेय उर्फ सुनील पांडेय का प्रभाव बढ़ा, जो पीरो से तीन बार विधायक रहे। परिसीमन के बाद तरारी बनी इस सीट पर 2010 में सुनील पांडेय ने जदयू से जीत हासिल की।

2015 में यह सीट भाकपा-माले के खाते में गई, जब सुदामा प्रसाद ने जीत दर्ज की। 2020 के चुनाव में सुदामा प्रसाद ने इस सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे सुनील पांडेय को हराया, जबकि भाजपा के कौशल कुमार विद्यार्थी तीसरे स्थान पर रहे। 2024 में सुदामा प्रसाद के सांसद बनने के बाद हुए उपचुनाव में सुनील पांडेय के बेटे विशाल प्रशांत ने भाजपा के टिकट पर इस सीट पर जीत हासिल की।

तरारी की राजनीति में जातीय समीकरण निर्णायक भूमिका निभाते हैं। यहां भूमिहार मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक है और उन्हें निर्णायक माना जाता है। इसके अलावा दलित, महादलित, राजपूत, ब्राह्मण, वैश्य और यादव मतदाता भी अच्छी-खासी तादाद में हैं, जो चुनावी नतीजों को प्रभावित करते हैं।

 

 

 

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