Kaushal Yadav Kargil Hero कारगिल वीर कौशल यादव को दी गई श्रद्धांजलि

कारगिल के शहीद कौशल यादव को नमन, वीरता के लिए मरणोपरांत मिला वीर चक्र
छत्तीसगढ़: कारगिल वीर कौशल यादव को दी गई श्रद्धांजलि

रायपुर: कारगिल विजय दिवस से पहले सिर्फ छत्तीसगढ़ के लोग ही नहीं, बल्कि पूरे हिंदुस्तान ने कौशल यादव को नमन किया है। मां भारती के सच्चे सपूत, छत्तीसगढ़ के लाल और यादव कुल के गौरव कौशल यादव ने कारगिल युद्ध में देश की सुरक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। उन्होंने युद्ध के मैदान में अदम्य साहस का परिचय देते हुए 5 पाकिस्तानी घुसपैठियों को मार गिराया। इस साहसिक लड़ाई में कौशल यादव 25 जुलाई 1999 को वीरगति को प्राप्त हुए थे।

25 जुलाई को कौशल यादव की पुण्यतिथि पर रायपुर में शहीद को श्रद्धांजलि दी गई। शहीद कौशल यादव चौक पर कार्यक्रम में कई प्रमुख व्यक्ति उपस्थित हुए और कौशल यादव को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की। इस मौके पर राज्य के उपमुख्यमंत्री अरुण साव ने कहा कि शहीद कौशल यादव सिर्फ यादव समाज के नहीं, बल्कि संपूर्ण छत्तीसगढ़ वासियों के गौरव हैं।

उपमुख्यमंत्री ने कहा, "कारगिल युद्ध के दौरान यादव समाज के एक वीर सपूत और भारत माता के सच्चे सपूत, छत्तीसगढ़ के कौशल यादव शहीद हो गए। अपनी जान देने से पहले उन्होंने घुसपैठियों को मार गिराया था। इस वीरतापूर्ण कार्य के दौरान उन्हें गोली लगी और वे वीरगति को प्राप्त हुए।"

अरुण साव ने कहा, "साथियों ने इस चौक का शहीद कौशल यादव नामांकरण करने का प्रस्ताव नगर निगम से पारित कराया था। इस चौक पर कौशल यादव की प्रतिमा लगे, चौक का सौंदर्यकरण हो, इसके लिए नगर निगम को निर्देशित किया गया है। महापौर और आयुक्त कार्यक्रम में मौजूद हैं। कौशल यादव को नमन करने के लिए हम सब उपस्थित हुए। हम सबको उनका त्याग और बलिदान प्रेरणा देता रहेगा।"

छत्तीसगढ़ में जन्मे कौशल यादव को 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान टुकड़ी का नेतृत्व करते हुए 16,700 फीट की ऊंचाई पर स्थित ज़ुलु टॉप पर कब्जा करने का कार्यभार सौंपा गया था। उन्होंने अपने असाधारण पर्वतारोहण कौशल से अपनी टुकड़ी के लिए चट्टान के किनारे रास्ता बनाया और लक्ष्य तक पहुंचने में मदद की।

चोटी पर पहुंचकर दुश्मन की भीषण गोलाबारी से विचलित हुए बिना उन्होंने साहसपूर्वक दुश्मन के गढ़ पर हमला किया और नजदीकी लड़ाई में 5 पाकिस्तानी घुसपैठियों को मार गिराया। हालांकि, वे युद्ध में गंभीर रूप से घायल हो गए थे, जिसके बाद 25 जुलाई 1999 को वे शहीद हो गए। उनके अदम्य साहस और अनुकरणीय वीरता के लिए उन्हें मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया।

 

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