पटना: बिहार के भागलपुर जिले में स्थित कहलगांव विधानसभा सीट सन्हौला, गोराडीह और कहलगांव प्रखंडों के साथ-साथ 12 ग्राम पंचायतों और कहलगांव नगर पंचायत को मिलाकर बनी है। यह भागलपुर लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है और अपने ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है।
कहलगांव का नाम भारतीय इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। यहां के अंतिचक गांव में स्थित विक्रमशिला महाविहार, जिसकी स्थापना 8वीं सदी के अंत में पाल वंश के राजा धर्मपाल (770-810 ई.) ने की थी, नालंदा विश्वविद्यालय के समकक्ष माना जाता था।
यह विश्वविद्यालय कोसी व गंगा नदियों से घिरा होने के साथ-साथ उत्तरवाहिनी गंगा के निकट होने के कारण तीर्थस्थल के रूप में भी प्रसिद्ध था। इतिहास के पन्नों में यह भी दर्ज है कि 1494 से 1505 तक कहलगांव जौनपुर सल्तनत की निर्वासित राजधानी रहा। यहीं पर बंगाल के अंतिम शासक महमूद शाह की समाधि भी है, जिन्हें शेरशाह सूरी से युद्ध में पराजय के बाद वीरगति प्राप्त हुई थी।
इसके अलावा, गंगा नदी के किनारे बसा कहलगांव कई प्राचीन मंदिरों और धार्मिक स्थलों का केंद्र है। यहां मां काली और भगवान शिव के मंदिर श्रद्धालुओं के बीच लोकप्रिय हैं। गंगा नदी न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह क्षेत्र की कृषि, मछली पालन और परिवहन का भी आधार है। हालांकि, गंगा के कारण बाढ़ और कटाव की समस्या भी इस क्षेत्र के लिए प्रमुख चुनौती है।
बाढ़, कटाव, रोजगार, कृषि, बिजली और सड़क जैसे मुद्दे कहलगांव के चुनावी विमर्श में हमेशा केंद्र में रहते हैं। ये समस्याएं क्षेत्र की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को प्रभावित करती हैं और मतदाताओं के बीच चर्चा का प्रमुख विषय बनी रहती हैं।
राजनीतिक इतिहास देखें तो 1951 में स्थापित कहलगांव विधानसभा सीट एक समय परंपरागत रूप से कांग्रेस का गढ़ रही। अब तक हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 11 बार जीत दर्ज की। जनता दल ने दो बार, जबकि सीपीआई, निर्दलीय, जदयू और भाजपा ने एक-एक बार इस सीट पर कब्जा जमाया है। साल 2020 के चुनाव में भाजपा ने पहली बार इस सीट पर जीत हासिल की, जब पवन यादव ने कांग्रेस के दिग्गज नेता सदानंद सिंह के बेटे शुभानंद को हराया।
कहलगांव में यादव और मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा, ब्राह्मण, कोइरी, रविदास और पासवान समुदाय के वोटर भी सियासी समीकरण को प्रभावित करते हैं। यह विविध मतदाता आधार इस सीट को सियासी रूप से संवेदनशील और प्रतिस्पर्धी बनाता है।
