जलवायु परिवर्तन की वजह से केकड़े, झींगे और ध्रुवीय भालू के अस्तिव पर खतरा

polar bear

वाशिंगटन: आर्कटिक सागर में जमी बर्फ उसकी पूरी समुद्री पारिस्थितिकी को जानने के लिए अहम है, लेकिन यह इसकी जटिलताओं को जानने से कहीं ज्यादा तेजी से पिघल रही है। हमारे ग्रह के उत्तर में एक असमान्य सागर मौजूद है। आर्कटिक सागर कई मायनों में विशेष है, लेकिन इसके ठंडे पानी के ऊपर तैरती समुद्री बर्फ खाद्य तंत्र और पारिस्थितिकी को धारण किए हुए है, जो केकड़े, झींगे जैसे जीवों से लेकर ध्रुवीय भालू के लिए जरूरी है, लेकिन जलवायु परिवर्तन की वजह से अब ये खतरे में है। हर साल मार्च में आर्कटिक सागर की बर्फ का सबसे अधिक विस्तार होता है और सितंबर में इसका आकार अपने न्यूनतम स्तर पर पहुंच जाता है।

इस साल मार्च में आर्कटिक में बर्फ की चादर 1.4 करोड़ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र तक फैल जाती है, जो अफ्रीका के आकार के करीब आधा है और पिछले महीने यह सिकुड़ कर 50 लाख वर्ग किलोमीटर के स्तर पर पहुंच गई। यह आंकड़ा बहुता बड़ा लग सकता है, लेकिन यह पहले के मुकाबले बहुत कम है। गत 40 साल से अधिक समय से उपग्रह आर्कटिक पर नजर रख रहे हैं और इसकी बर्फ चादर वैज्ञानिकों के आकलन और मॉडल के मुकाबले कहीं तेजी से सिकुड़ रही है। आशंका है कि अगर हम वैश्विक तापमान में वृद्धि को औद्योगिक क्रांति के पूर्व के मुकाबले दो डिग्री पर सीमित नहीं करते, तब इस सदी के मध्य तक आर्कटिक सागर गर्मियों में बर्फ से खाली हो सकता है।

हमारे ग्रह के मुकाबले कहीं तेजी से आर्कटिक सागर के गर्म होने की एक वजह ‘‘पॉजिटिव एल्बेडो फीडबैक’’ (सौर तरंगों का परावर्तन) है। समुद्र और पहाड़ों पर जमी बर्फ सूर्य की रोशनी को अधिक परावर्तित करती हैं। जब ग्लोबल वार्मिंग से बर्फ पिघलेगी, तब गहरे रंग का पानी रह जाएगा और इससे सूर्य की रोशनी कम परावर्तित होगी और अधिक अवशोषित होंगी जिससे यह और गर्म होगी और समुद्र के बर्फ के पिघलने की गति को और तेज करेगी। समुद्री बर्फ सूर्य की रोशनी को परावर्तित कर वैश्विक तापमान को नियंत्रित रखने में मदद करती है, लेकिन यह आर्कटिक की पारिस्थितिकी के लिए भी मददगार है। समुद्री बर्फ ठंडे पानी से कहीं अधिक उपयोगी है। यह जटिल ठोस बर्फ, गैस के बुलबुलों और नमकीन पानी का जटिल मिश्रण है।

इसमें पूरी तरह से विशेष पारिस्थितिकी पनपती है, जिसमें विषाणु, जीवाणु और कवक से लेकर शैवाल और सूक्ष्म कड़े खोल वाले जीव तक शामिल हैं। इस तरह के जीवों की एक समानता होती है कि ये नमकीन पानी में भी फल-फूल सकते हैं और अंधेरे, समुद्री बर्फ के ठंडे व लवण युक्त पर्यावरण में भी जीवित रह सकते हैं। समुद्री बर्फ में अधिकतर जीव छोटे शैवाल होते हैं। पानी में मौजूद फाइटप्लैंगक्टन के साथ यह आर्कटिक के पूरे समुद्री खाद्य तंत्र को आधार प्रदान करते हैं। जब कोई और खाद्य सामग्री नहीं होती है तब बर्फ के नीचे मौजूद कई जीवों के लिए ये शैवाल भोजन का काम करते हैं। आर्कटिक कॉड (मछली की एक प्रजाति) पूरे खाद्य तंत्र में ऊर्जा का स्थानांतरण करती है, जिनमें शीर्ष शिकारी ध्रुवीय भालू भी शामिल है।

सूक्ष्म जीव शैवालों को खाते हैं और आर्कटिक कॉड इनमें से अधिकतर को अपना भोजन बनाती है। कॉड को रिंग्ड सील और बेलुगा व्हेल जैसे जीव अपना शिकार बनाते हैं। आर्कटिक सागर में मौजूद प्रजातियों की पूरी श्रृंखला अपने भोजन के लिए समुद्री बर्फ पर निर्भर है। 

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