सुधीर जोशी*
राज्य की उपराजधानी नागपुर में हुए राज्य विधिमंडल के शीतकालीन अधिवेशन में उपमुख्यमंत्री तथा राज्य के वित्त मंत्री देवेंद्र फडणवीस ने राजकोष पर भार पड़ने का हवाला देते हुए पुरानी पेंशन लागू करने से साफ इंकार कर दिया है. पुरानी पेंशन बहाल नहीं किए जाने की घोषणा से सरकारी कर्मचारियों तथा शिक्षकों में भारी निराशा व्याप्त है. पुरानी पेंशन बंद करने के कांग्रेस-राकांपा सरकार की प्रशंसा भी देवेंद्र फडणवीस करना नहीं भूले. बढ़ती महंगाई की चुनौतियों के बीच पुरानी पेंशन योजना लागू करने के प्रति असमर्थता व्यक्त करने वाले देवेंद्र फडणवीस को पुरानी पेंशन योजना लागू करने की असमर्थता के बीच इस बात का ख्याल नहीं आया कि पूर्व विधायकों,सांसदों को दी जा रही पेंशन से राजकोष को घाटा नहीं पहुंच रहा. राजनेताओं की पेंशन पर करोड़ो रूपए हर माह खर्च करने का बोझ राजकोष पर नहीं पड़ता. पुरानी पेंशन लागू न करने को लेकर देवेंद्र फडणवीस ने जो तर्क दिया,वह तर्क उचित नहीं है.
पुरानी पेंशन योजना (OPS) पर महाराष्ट्र सरकार की स्थिति को स्पष्ट करते हुए उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने जो कुछ कहा है उससे राज्य में भाजपा के प्रति लोगों का गुस्सा बढ़ने के आसार दिखाई दे रहे हैं. वर्तमान में पूरे देश में पुरानी पेंशन योजना लागू करने की गुहार लगायी जा रही है. जहां एक ओर महाराष्ट्र सरकार राज्य में पुरानी पेंशन योजना को लागू करने से साफ इंकार कर दिया है, वहीं कुछ राज्य सरकारों ने भी इस मांग पर सकारात्मक प्रतिक्रिया भी दी है. नागपुर में शीतकालीन सत्र के दौरान देवेंद्र फडणवीस ने इस संबंध में बताया कि महाराष्ट्र में ओपीएस को लागू नहीं किया जा सकता है. पुरानी पेंशन व्यवस्था को अमल में लाने से इससे राज्य की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ेगा.
शीतकालीन सत्र के दौरान फडणवीस ने कहा कि 2005 में तत्कालीन सरकार ने पुरानी पेंशन योजना के बंद करके राज्य की आर्थिक व्यवस्था को बिगड़ने से बचा लिया. फडणवीस ने विधानसभा में खुलासा किया कि महाराष्ट्र की वर्तमान आर्थिक स्थिति को देखते हुए राज्य में पुरानी पेंशन योजना लागू करना संभव नहीं हो पाएगा. राज्य के वित्त मंत्री ने बताया कि अगर पुरानी पेंशन योजना को लागू किया गया तो राज्य पर 1 लाख, 10 हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा. देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि अगर पुरानी पेंशन लागू हुई तो राज्य दिवालिया हो जाएगा. सरकारी कर्मचारियों ने गुहार लगायी है नवंबर 2005 के बाद सरकारी सेवा में शामिल हुए कर्मचारियों के लिए लागू की गई नई पेंशन योजना को तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया जाए और उसकी जगह पुरानी पेंशन योजना को लागू किया जाए, लेकिन महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे तथा देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली सरकार ने कर्मचारियों की इस मांग को सिरे से खारिज कर दिया है.
यहां सवाल यह उठता है कि जब राजस्थान, झारखंड और पंजाब जैसे राज्य नई पेंशन योजना को रद्द कर पुरानी पेंशन योजना को बहाल किया जा सकता है तो फिर महाराष्ट्र में पुरानी पेंशन योजना लागू करने में क्या परेशानी है. हिमाचल प्रदेश की नव निर्वाचित कांग्रेस सरकार ने भी पुरानी पेंशन योजना लागू करने की बात कही है, ऐसे में महाराष्ट्र के लोगों का कहना है कि सरकार महाराष्ट्र में पुरानी पेंशन योजना क्यों नहीं लागू कर रही है. कर्मचारी संगठन ने दलील है कि महाराष्ट्र में ओपीएस लागू करने में कोई कानूनी बाधा नहीं है, लेकिन इस मुद्दे पर सरकार की नीयत ठीक नहीं लगती. कर्मचारी संगठन का कहना है कि सभी पर नई पेंशन योजना थोपना उचित नहीं है, इसलिए महाराष्ट्र के सरकारी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना को तत्काल लागू किया जाना चाहिए.
जब देश के कई राज्य पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) की ओर लौट रहे हैं तो फिर देश को सबसे ज्यादा राजस्व राशि देने वाले महाराष्ट्र में इसे लागू करने में क्या परेशानी है. इस मुद्दे पर पंजाब सरकार ने खुले तौर पर कहा है कि वह अपने कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना शुरु करने पर विचार कर रही है और इस बात के प्रबल आसार भी है कि पंजाब में यदि पंजाब में पुरानी पेंशन योजना लागू हो गई तो पंजाब राजस्थान, छत्तीसगढ़ और झारखंड के बाद पुरानी पेंशन योजना लागू करे वाला चौथा राज्य बन जाएगा. पुरानी पेशन योजना तथा नई पेंशन योजना में क्या अंतर है, पुरानी पेंशन योजना लागू करने पर जोर क्यों दिया जा रहा है, इस बारे में जानकारी होना भी बहुत जरूरी है. पुरानी पेंशन योजना में सेवानिवृत्ति होने पर कर्मचारियों को उनके अंतिम मूल वेतन और महंगाई भत्ता का 50 प्रतिशत या सेवा के पिछले दस महीनों में उनकी औसत कमाई, जो भी उनके लिए अधिक लाभप्रद हो, प्राप्त होता है, इसमें कर्मचारी को दस वर्ष की सेवा को पूरा करना जरूरी होता है. पुरानी पेंशन योजना में कर्मचारियों को अपनी पेंशन में योगदान करने की आवश्यकता नहीं है. पुरानी पेंशन योजना में सरकारी नौकरी प्राप्त होने के बाद एक प्रोत्साहन सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन और पारिवारिक पेंशन की गारंटी थी. रिटायरमेंट कॉर्पस बिल्डिंग का दबाव नहीं था. सरकार ने पुरानी पेंशन योजना इसलिए बंद की क्योंकि सेवानिवृत्त लोगों की जीवन प्रत्याशा में वृद्धि के कारण पुरानी पेंशन योजना के तहत हर माह व्यय की जाने वाली धनराशि का भुगतान करना कई सरकारों के लिए कठिन होने लगा.
अगर नई पेंशन योजना (एनपीएस) पर गौर किया जाए तो इस में सरकार की ओर से नियोजित लोग अपने मूल वेतन का 10 प्रतिशत एनपीएस में योगदान करते हैं, जबकि उनके नियोक्ता 14 प्रतिशत तक योगदान करते हैं. निजी क्षेत्र के कर्मचारी भी एनपीएस में स्वेच्छा से भाग ले सकते हैं. पुरानी पेंशन योजना लागू करने पर दिए जा रहे जोर को देखते हुए नई पेशन योजना के नियमों में कुछ बदलाव सरकार की ओर से जरूर किए गए हैं, लेकिन बदलाव के बावजूद पुरानी पेंशन योजना नई पेंशन योजना के मुकाबले मजबूत तथा लाभदायी है.
पुरानी पेंशन योजना को भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने दिसंबर 2003 में बंद कर दिया था और नई पेंशन योजना 1 अप्रैल, 2004 को लागू की गई. नई पेंशन योजना में एक खामी यह भी है, इसमें जीपीएफ यानी सामान्य भविष्य निधि को बंद कर दिया गया है.
जीपीएफ में 12 फीसदी कर्मचारी और 12 प्रतिशत नियोक्ता का निवेश योगदान होता था. नई पेंशन योजना में राज्य सरकार के कर्मचारी के मूल वेतन व डी ए का 10 फीसदी कटता है और इतनी ही राशि नियोक्ता भी देता है, लेकिन यह जीपीएफ से 2 प्रतिशत कम है. राज्य कर्मचारियों की नई पेंशन योजना और बचत दोनों ही लिहाज से जीपीएफ के मुकाबले कम है.
गुजरात का चुनाव हो या फिर हिमाचल प्रदेश, हर तरफ पार्टियां अपनी चुनावी वादों में पुरानी पेंशन की बहाली को लेकर राजनीति कर रही हैं. सेवानिवृत्त कर्मचारियों को लुभाने के लिए जिन राज्यों में चुनाव हैं, वहां की विपक्ष दलों ने पुरानी पेंशन योजना को एक हथियार के रूप में सामने लाया है. 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव तथा महाराष्ट्र में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र पुरानी तथा नई पेशन योजना को लेकर कोहराम मचा हुआ है.
पुरानी पेंशन योजना को दिसंबर 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने खत्म किया था, इसके बाद राष्ट्रीय पेंशन योजना लागू की गई. एनपीएस 1 अप्रैल, 2004 से प्रभावी है. राज्य स्तर पर पुरानी तथा नई पेंशन योजना को लेकर जंग छिड़ी हुई है. पुरानी पेंशन योजना को लागू करने के लिए एक मंच पर सरकारी कर्मचारी एकजुट होने लगे हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि विभिन्न विभागों के कर्मचारी संगठनों ने रणनीति बनाई है. नई पेंशन योजना में पुरानी योजना के मुकाबले कर्मचारियों को बहुत कम फायदे मिलते हैं, इससे उनका भविष्य सुरक्षित नहीं है. सेवानिवृत्ति होने के बाद जो पैसा मिलेगा, उस पर टैक्स देने का नियम बनाए जाने से कर्मचारी नई पेंशन योजना का खुलकर विरोध कर रहे हैं.
पंजाब में पिछले पांच वर्ष में 44 प्रतिशत कर्ज बढ़ा है और वह अपने डेढ़ लाख करोड़ रुपये के बजट में से करीब 61 हजार करोड़ रुपये कर्मचारियों के वेतन एवं पेंशन पर खर्च कर रहा है. मध्य प्रदेश में भी करीब 52 प्रतिशत बजट की राशि इसी मद में खर्च की जा रही है. देश में करीब 12 करोड़ लोग 60 वर्ष से अधिक आयु के हैं, जिनमें से 90 प्रतिशत लोगों को किसी प्रकार की संस्थागत पेंशन नहीं मिलती है. देश में साढ़े पांच करोड़ विधवा महिलाएं हैं, जो अफ्रीका और तंजानिया की कुल आबादी से अधिक हैं. अकेले सरकारी कार्मियों का 78,60,657 करोड़ रुपये एनपीएस में जमा हैं, जो जीडीपी के करीब 2.4 प्रतिशत है. चुनावी मुहाने पर खड़े राज्यों को लगता है कि वे पुरानी पेंशन बहाली करने का वादा करके चुनावी वैतरणी पार विजयश्री प्राप्त कर सकते हैं. बेहतर तो यह है कि केंद्र सरकार की तरह सभी राज्य सरकारें भी इस मांग को राष्ट्रीय हितों के साथ विश्लेषित करने का साहस दिखाएं, ऐसा न हो कि विपक्षी दल इसे एक चुनावी हथियार के रूप में उपयोग में लाने लगें.
पुरानी पेंशन स्कीम (OPS) में पेंशन के लिए वेतन से कोई कटौती नहीं होती. नई पेंशन योजना में कर्मचारी के वेतन से 10% (बेसिक+DA) की कटौती होती है. पुरानी पेंशन योजना में GPF की सुविधा है, नई पेंशन योजना में जनरल प्रोविडेंट फंड (GPF) की सुविधा को नहीं जोड़ा गया है. पुरानी पेंशन (OPS) एक सुरक्षित पेंशन योजना है, इसका भुगतान सरकार की ट्रेजरी के माध्यम से किया जाता है. नई पेंशन योजना (NPS) में शेयर बाजार आधारित है, बाजार की चाल के आधार पर ही भुगतान होता है. पुरानी पेंशन में रिटायरमेंट के समय अंतिम मूल वेतन का 50 फीसदी तक निश्चित पेंशन मिलती है.
नई पेंशन योजना में रिटायरमेंट के समय निश्चित पेंशन की कोई गारंटी नहीं है. पुरानी पेंशन योजना में 6 माह के बाद मिलने वाला महंगाई भत्ता (DA) लागू होता है. नई पेंशन योजना में 6 माह के बाद मिलने वाला महंगाई भत्ता लागू नहीं होता है. पुरानी पेंशन योजना में रिटायरमेंट के बाद 20 लाख रुपए तक ग्रेच्युटी मिलती है, नई पेंशन योजना में रिटायरमेंट के समय ग्रेच्युटी का अस्थाई प्रावधान है. पुरानी पेंशन योजना में सेवा काल के दौरान मौत होने पर फैमिली पेंशन का प्रावधान है. नई पेंशन योजना में सेवा काल में मृत्यु होने पर फैमिली पेंशन मिलती है. पुरानी पेंशन योजना में सेवानिवृत्ति पर GPF के ब्याज पर किसी प्रकार का इनकम टैक्स नहीं लगता है, नई पेंशन योजना में सेवानिवृत्ति पर शेयर बाजार के आधार पर जो पैसा मिलेगा, उस पर टैक्स देना पड़ेगा.
पुरानी पेंशन योजना में सेवानिवृत्ति के समय पेंशन पाने के लिए जीपीएफ से कोई निवेश नहीं करना पड़ता है. कुल मिलाकर पुरानी पेंशन योजना सेवानिवृत्त कर्मचारियों को ज्यादा लाभ देती है और नई पेंशन योजना उन्हें कई सुविधाओं से वंचित करती है. अब देखने वाली बात यह है कि पुरानी पेंशन लागु करने के लिए राज्य सरकार की ओर से किया गया इंकार भाजपा के लिए कितना नुकसानदायक साबित होता है. पुरानी पेंशन योजना लागु करने को लेकर देवेंद्र फडणवीस की ओर से किया गया इंकार आगामी लोकसभा तथा विधानसभा चुनाव में भाजपा की सीटों पर भी असर डालेगा, अगर ऐसा कहा जाए तो इसमें कुछ गलत नही
लगें.
—दैनिक हाक फीचर्स
*लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं