महाराष्ट्रः मंत्रिमण्डल का विस्तार तो हुआ मगर...

eknath shinde

सुधीर जोशी*

देश के दूसरे बड़े राज्य महाराष्ट्र में लंबी प्रतीक्षा के बाद एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार के मंत्रिमंडल का गठन हो गया. 39 दिनों तक सिर्फ मुख्यमंत्री तथा उपमुख्यमंत्री वाली इस सरकार में सदस्यों की संख्या बढ़ गई है. 9 अगस्त को शिवसेना के बागी विधायकों के घटक दल तथा भाजपा के विधायकों को मंत्री पद की शपथ दिलायी । गई शिंदे-फडणवीस के नेतृत्व में महाराष्ट्र में 39 दिनों सरकार तो अस्तित्व में आ गई थी, लेकिन मंत्रिमंडल का विस्तार अधर में लटका हुआ था, लेकिन अंतत 9 अगस्त वह दिन रहा , जिस दिन शिंदे सरकार के मंत्रिमंडल को आकार मिला। 

लेकिन शिंदे के इस मंत्रिमंडल की स्थापना होते ही कुछ सवाल भी उठाए गए, कुछ ने कहा कि सर्वाेच्च न्यायालय में शिवसेना किसकी इस मुद्दे संबंधित मामले का परिणाम सामने आने से पहले ही शिंदे सरकार के मंत्रिमंडल का गठन क्यों किया गया, अगर ऐसा ही करना था तो फिर 39 दिन मंत्रिमंडल के गठन को रोककर क्यों रखा गया था. अगर शिवसेना के मसले पर फैसला सामने आने से पहले ही मंत्रिमंडल का गठन किया जाना था तो इतने दिन गतिरोध क्यों बनाकर रखा गया. कुछ लोगों का कहना है कि जिस वक्त एकनाथ शिंदे ने मुख्यमंत्री तथा देवेंद्र फडणवीस ने उपमुख्यंत्री ने शपथ ली थी, उसी वक्त कुछ अन्य मंत्रियों को शपथ दिलानी चाहिए थी, या फिर मुख्यमंत्री- उपमुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण के एक सप्ताह के बाद मंत्रिमंडल का शपथ ग्रहण करा लेना चाहिए था।

एकनाथ शिंदे सरकार के मंत्रिमंडल के गठन को लेकर हुए विलंब पर कई सवाल उठाए गए, तरह-तरह के कयास लगाए गए, हर किसी ने मंत्रिमंडल के गठन को लेकर हो रहे विलंब के अपने-अपने मायने निकाले और जब 39 दिन एकनाथ सरकार के लघु मंत्रिमंडल का शपथ ग्रहण हुआ तो सवाल उठा कि 39 दिन की प्रतीक्षा के बाद सिर्फ लघु मंत्रिमंडल ही सामने आया है. यानि एक तरह से एकनाथ शिंदे के मंत्रिमंडल का गठन खोदा पहाड़ निकली चुहिया की कहावत ही साबित हुआ है. लंबी प्रतीक्षा के बाद कुछ मंत्रियों के शपथ लेने के अपने-अपने अर्थ निकाले जा रहे हैं और कहा जा रहा है कि इस नई सरकार में सब कुछ ठीक नहीं है।

मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने अपने साथ आए शिवसेना के 9 विध्यकों को ही अपने पहले मंत्रिमंडल में स्थान दिया है. राज्य सरकार की शिंदे सेना में संजय राठोड तथा अब्दुल सत्तार को स्थान देने पर भी खूब चर्चा हो रही है. एकनाथ शिंदे यांनी ने संजय राठौड तथा अब्दुल सत्तार को अपने मंत्रिमंडल में स्थान देने में दिलचस्पी क्यों दिखायी इसे लेकर बेहद आश्चर्य व्यक्त किया जा रहा है. पूजा चव्हाण मामले में मंत्री पद गंवाए वाले संजय राठौड को मंत्री बनाने की आखिर क्या मजबूरी थी, विपक्ष इस मुद्दे पर शिंदे सरकार को घेरेगी, यह तो लगभग तय है. पूजा चवाहण मामले में पुलिस ने भले ही क्लोजर रिपोर्ट दे दी हो लेकिन इस रिपोर्ट को न्यायालय ने अभी तक स्वीकार नहीं किया है, बावजूद इसके संजय राठौड को मंत्री पद की शपथ कैसे दिलायी गई।

अब्दुल सत्तार यांचे नाव टीईटी घोटाले में सामने की वजह से यह कहा जा रहा था कि उन्हें शिंदे मंत्रिमंडल में स्थान नहीं मिलेगा, लेकिन उन्हें भी मंत्री की शपथ दिलाने के कारण पूजा चव्हाण मामले के सभी जख्म हरे हो गए हैं। एकनाथ शिंदे के मंत्रिमंडल में भाजपा की ओर से जिन-जिन ने मंत्री पद की शपथ ली है, उनमें उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की मर्जी के लोगों का ही समावेश है। 9 अगस्त को हुए राज्य मंत्रिमंडल गठन को संजय शिरसाठ तथा बच्चू कडू ने नाराजगी व्यक्त की है, इस वजह से आने वाले समय में मुख्यमंत्री को अपने गुट के विधायकों की नाराजगी का सामना करना पड़ेगा.  

जैसे ही शिंदे के मंत्रिमंडल में मंत्री के रूप में शपथ लेने के लिए संजय राठोड का नाम लिया गया भाजपा नेता चित्रा वाघ ने इस पर आपत्ति उठायी. चित्रा वाघ एक आक्रामक महिला नेता है और उन्होंने पूजा चव्हाण मामले में संजय राठौर के खिलाफ जोरदार आवाज उठायी थी. राठौर की तरह ही अब्दुल सत्तार का नाम घोटाले में सामने आने पर उन्हें किस आधार पर मंत्री पद की शपथ दिलायी गई, इसे लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं. 

लंबी प्रतीक्षा के बाद सिर्फ मुख्यमंत्री तथा उपमुख्यमंत्री की सरकार में मंत्री पद की संख्या बढी। बहुप्रतीक्षित मंत्रिमंडल सामने तो आया लेकिन विवाद और आश्चर्य को भी अपने साथ ले आया है, अब देखना यह है कि मुख्यमंत्री के रूप में एकनाथ शिंदे तथा उपमुख्यमंत्री के रूप में देवेंद्र फडणवीस मंत्रिमंडल गठन के लेकर उठने वाले वबंडर को रोकने में किस हद तक कामयाब हो पाते हैं।

मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की यह मजबूरी है कि उन्हें अपने साथ आए सभी विधायकों की मर्जी का ध्यान रखना है. अगर मुख्यमंत्री ने अपनी ही मर्जी चलायी तो उनके लिए सरकार चलाना मुश्किल हो जाएगा. भाजपा की ओर से चित्रा वाघ ने तो शपथ ग्रहण के बाद ही विरोध का स्वर मुखर कर दिया था, ऐसे में शिवसेना से बगावत कर मुख्यमंत्री बने एकनाथ शिंदे मंत्रिमंडल के गठन के साथ ही विरोध तथा नाराजगी के भंवर में फंस गए हैं, वे खुद को इस भंवर से कैसे बचाते हैं, इसी पर शिंदे सरकार का भविष्य टिका हुआ है। 

एकनाथ शिंदे के लिए लंबी प्रतीक्षा के बाद हुआ लघु मंत्रिनंडल का गठन सुखद कम विवादित ही ज्यादा रहा है, इसलिए यहां सिर्फ इतना ही कहना उचित होगा कि आगे-आगे देखिए होता है क्या। हर संकट समय के साथ समाप्त हो जाता है, अब देखना यह है कि 39 दिन बाद शपथ लेने वाले मंत्रियों में से कुछ के नाम पर विरोध का जो स्वर उठा है, वह कब शांत होता है।       

—दैनिक हाक फीचर्स

*लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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